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रेडियोएक्टिवता



सन 1896 में हेनरी बेकुरेल ने देखा कि काले कागज में लिपटी फोटोग्राफिक प्लेट को यूरेनियम या किसी यौगिक के पास रखा जाए तो फोटोग्राफिक प्लेट काली पड़ जाती है यूरेनियम परमाणु के स्वतः विघटित होने के फलस्वरूप एक अदृश्य किरणे निकलती है जो कागज को बेधने की क्षमता रखती है और फोटोग्राफिक प्लेट पर प्रभाव डालती है इन किरणों को बेकुरेल किरणे कहा गया

सन 1898 में मैडम क्यूरी ने परमाणुओं के स्वतः विघटन का गुण थोरियम में भी पाया उन्होंने तत्वों के परमाणुओं के इस गुण को रेडियोएक्टिवता कहा इन किरणों को रेडियोएक्टिव किरणें नाम दिया


"वे तत्व जो प्रकृति में स्वतः विघटित होते रहते हैं रेडियोएक्टिव तत्व कहलाते हैं जिससे निकलने वाली किरणें रेडियोएक्टिव किरणें कहलाती है तथा इनका यह गुण रेडियोएक्टिवता कहलाता है"


रेडियोएक्टिव किरणों के गुण-

रदरफोर्ड ने रेडियोएक्टिव किरणों का विस्तृत अध्ययन किया-

सीसे के एक टुकड़े में छिद्र बनाकर उसमें किसी रेडियोएक्टिव पदार्थ को रखकर उससे प्राप्त रेडियोएक्टि किरणों को स्थिर-वैद्युत क्षेत्र में प्रवाहित किया जाए तो रेडियोएक्टिव किरणे तीन भागों में बंट जाती है कुछ किरणें ऋणावेशित प्लेट की तरफ मुड़ जाती है कुछ किरणें धनावेशित प्लेट की तरफ मुड़ जाती है तथा कुछ किरणे बिना मुड़े ही निकल जाती है अतः रेडियोएक्टिव किरणे तीन प्रकार की होती है-अल्फा,बीटा व गामा




● द्रव्यमान का क्रम-अल्फा>बीटा>गामा

● वेग का क्रम-अल्फा<बीटा<गामा

● बेधन क्षमता का क्रम-अल्फा<बीटा<गामा

● गैसों को आयनित करने की क्षमता-अल्फा>बीटा>गामा


★ अल्फा किरणें धनावेशित किरणों से मिलकर बनी होती है यह हीलियम के परमाणु के नाभिक होते हैं इनमें 02 प्रोटोन व 02 न्यूट्रॉन होते हैं तथा द्रव्यमान 04amu होता है

बीटा किरणें ऋणावेशित होती है इनका द्रव्यमान 1/1837amu होता है गामा किरणें प्रकाश के समान विद्युत चुम्बकीय विकिरण है इनका द्रव्यमान नही होता


महत्वपूर्ण नियम-

● किसी रेडियोएक्टिव परमाणु के नाभिक में से एक अल्फा कण के उत्सर्जित होने से उसके परमाणु क्रमांक में दो की तथा उसकी द्रव्यमान संख्या में चार की कमी आ जाती है

● किसी रेडियोएक्टिव परमाणु के नाभिक में से एक बीटा-कण के उत्सर्जन से जो परमाणु मिलता है उसका परमाणु क्रमांक एक अधिक होता है तथा द्रव्यमान संख्या समान रहती है

● गामा कणों के उत्सर्जन से कोई परिवर्तन नही होता है



अर्द्ध आयु काल-

किसी रेडियोएक्टिव तत्व का अर्द्ध आयु काल वह समय है जिसमें उस तत्व की मात्रा रेडियोएक्टिव विघटन के पश्चात उस तत्व की प्रारंभिक मात्रा की आधी रह जाती है

T1/2= 0.6931/K


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