बायोलॉजी [जीव विज्ञान】
■ जीवधारियों / जीवित चीजों का अध्ययन
Biology-BIOS 【Life/जीवन】+Logos 【Study/अध्ययन】
● जीवविज्ञान का जनक-अरस्तू
● वनस्पति विज्ञान 【जनक-थियोफ़्रेस्ट्स】
● भारतीय वनस्पति विज्ञान के जनक - विलियम रॉक्सबर्ग
जीवों का शरीर एक या अनेक कोशिकाओं (Cells) से मिलकर बना होता है, कोशिकाओं का वह समूह जो उत्पत्ति, संरचना एवं कार्य में समान होता है उतक (Tissue) कहलाता है, ऊतक मिलकर जीवों के अंगो (Organs) का निर्माण करते है अंगो से मिलकर अंग तंत्र की निर्माण
■ कोशिका -ऊतक-अंग-अँगतन्त्र-जीव
जीवद्रव्य-हक्सले 【जीवन का भौतिक आधार】
इसमें 90% जल, 7% प्रोटीन व 2% कार्बोहाइड्रेट
■ उपापचय (Metabolism) -दो प्रकार
● उपचयन (Anabolism)-सरल से जटिल अणुओं का निर्माण है, जैसे-वृद्धि
● अपचयन (Catabolism)-जटिल अणु टूटकर सरल अणुओं का निर्माण और ऊर्जा मुक्त करते है, जैसे - श्वसन
■ मुख्य अंग तेत्र :-
● अध्यावरणी तंत्र 【Integumentory System】
● पाचन तंत्र [Digestive System】
● श्वसन तंत्र 【Respiratory System】
● परिसंचरण तंत्र 【Circulatory System】
● उत्सर्जन तंत्र 【Excretory System】
● जनन तंत्र 【Reproductive System】
त्वचा या अध्यावरण-
दो स्तर होते हैं-
1.अधिचर्म या उपचर्म 【बाहरी स्तर】
2.चर्म 【भीतरी स्तर】
■ अधिचर्म या उपचर्म 【Epidermis】 - उत्पत्ति बाहयजनन स्तर से त्वचा की सबसे बाहरी परत होती है तथा बाहय से अंदर की ओर उप परत होती है
■ चर्म [Dermis or Hypodermis] - उत्पत्ति मध्यजनन स्तर से अधिचर्म के ठीक नीचे पाई जाती है, तथा 2-3 गुनी मोटी होती है, निर्माण तन्तुमय संयोजी ऊतको से होता है शरीर को बाह्य आघातों से बचाती है
● अंकुरण या मैल्पीधी स्तर के मध्य कुछ रंगा कोशिकाएँ भी पाई जाती है जिनमें मिलैनिन नामक रंगा पदार्थ होता है, इन्हीं के कारण बालों का रंग काला होता है।
■ ग्रंथियाँ -
● स्वेद ग्रंथियाँ - अशाखित व लंबी कुंडलित नली समान संरचना के रूप में होती है जो पसीने का स्त्रावण करती है
● तेल या सिबेसियस ग्रंथियो- रोम पुटिका में खुलती है इनसे तैलीय तरल 'सीबम' स्रावित होता है जो बाल तथा त्वचा को चिकना तथा जलरोधी बनाता है
● स्तन ग्रन्थियाँ - स्वेद ग्रंथि का रुपांतरित रूप, तथा केवल स्त्रियों में पूर्ण विकसित होती है, नवजात का पोषण करती
● सेरुमिनस ग्रंथियों - ये मानव कर्ण में पाई जाती है, तथा रुपांतरित स्वेद ग्रन्थियाँ होती है इनसे मोम समान पदार्थ सेरुमेन" स्रावित होता है बाहय कर्ण नलिका को चिकना तथा कर्णपटह को नम रखता है।
● आयु एवं लैक्राइमल ग्रंथि - नेत्र के बाहरी कोण पर ऊपर की ओर त्वचा के नीचे स्थित होती है जलीय तरल स्त्रावित, कोर्निया को स्वच्छ बनाती है
● मीबोमियन ग्रंथियाँ- नेत्र की बरौनियों की पुटिकाओं में खुलती है
● मूलाधार ग्रंथियाँ - जननांगों एवं गुदा के समीप स्थित होती है
● रदनक (Canines) -कृन्तक से सटे नुकीले धारदार दांत होते हैं जो भोजन को चीरने-फाड़ने के काम करते है ऊपर तथा नीचे जबड़े में दो-दो रदनक होते हैं
● अग्रचवर्णक (Premolars) - ऊपरी तथा निचले जबड़े में चार-चार व भोजन को पीसने का कार्य करते है
● चवर्णक (Molars) - ऊपरी तथा निचले जबड़े में छह-छह होते हैं भोजन को पीसने का कार्य करते हैं
दंत सूत्र-
चारों प्रकार के दांतो की संख्या को एक समीकरण द्वारा प्रदर्शित करते है जिसे दंतसूत्र कहते हैं एक जबडा का आधा भाग -ICPMM
● वयस्क-दंत सूत्र×2=2123×2=16+16=32
● शिशु - अग्रचवर्णक नहीं होते है - 2102=5×2=10
जिह्वा - लंबी व चपटी मांसल संरचना होती है श्लेष्म कला श्लेष्म का स्त्रावण करती है जिह्वा के ऊपरी भाग पर चार प्रकार की स्वाद कलिकाएँ होती है आगे छोर मीठे, पश्चभाग कड़वे, पार्श्व किनार खट्टे, अत्र छोर के कुछ पीछे नमकीन स्वादों का अनुभव दिलाते हैं
ग्रसनी (Pharynx) -
मुख गुहिका का पिछला भाग ही गृसनी कहलाता है यह 12-14 Cm. लंबी की कीपाकार नली होती है वायु व भोजन का सहमार्ग होती है यह बोलते समय ध्वनि की गूंज उत्पन्न करने में सहायता करती है
ग्रसनी में अंदर एक बड़ा छिद्र होता है जिसे निगलद्वार (Gullet) कहलाता है इसके पास ही श्वासनली का छिद्र अथवा घाँटीद्वार (Glotti's) होता है घाँटीद्वार पर लटकी हुई पत्ती के समान उपारिथमय घाँटीढापन (Epiglottis) होता है भोजन निगलते समय घोटीढापन, घोटीहार को ढक लेता है जिससे भोजन श्वासनली में नहीं जा पाता है।
ग्रसिका या ग्रासनली (Oesophagus)-
यह पतली, पेशीय, सकुचनशील व लगभग 23.27 Cms लंबी नली है इसकी दीवार में पाचन ग्रंथियां नहीं होती परंतु श्लेष्म ग्रंथियाँ होती है
आमाशय-
यह लगभग 25Cm. लंबा, आहरनाल का सबसे चौड़ा थैलीनुमा भाग होता है जोकि 'J' आकार का होता है। इसमे जठर ग्रंथियाँ पाई जाती है जो भोजन के पाचन हेतु जठर रस का स्रावण करती है जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (एचसीएल), पेप्सिन, लाइपेस एंजाइम होते है
इसके चार प्रमुख भाग होते हैं-
● कार्डियक - ऊपरी भाग
● फंडिक - मध्य आमाशय
● पाइलोरिक-निचला भाग जो छोटी आंत में खुलता है
● शेषांत- तीनों के बाद बचा
छोटी आंत या क्षुद्रांत्र (Small Intestine)-
पाचन तथा अवशोषण का मुख्य केंद्र होती है लगभग 6-7 मीटर लंबी तथा 2.5 सीएम. चौड़ी तथा अत्यधिक कुण्डलित नली होती है, इसमें अधिकतर भाग में रसांकुर (Villi) पाये जाते हैं
तीन भाग -
गृहणी -25Cm. लंबी, C अथवा U आकार की, गृहणी तथा ब्रूनर ग्रन्थियाँ
मध्यांत्र - 2.4 मीटर लंबी कुंडलित नलिका, व्यास 4 सेमी
शेषान्त्र- 3.4m. लंबी, अंतिम हिस्सा, बड़ी आंत के सीकम में खुलता है
छोटी आंत की शुरुआत में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लिक अम्ल व वसा का पूर्ण रूप से पाचन होता है।
बड़ी ऑत या बृहदान्त्र (Large Intestine)-
यह आहारनाल का अंतिम भाग लगभग 1.5 मीटर लंबी व 4-7 CM. चौड़ी नलिका, पचे हुये शेष भोजन का तथा जल का अवशोषण होता है होती तथा बड़ी आँत के बीच एक शेषांत्र उण्डुकीय कपाट होता है
तीन भाग -
उण्डुक/सीकम - यह 5-8 CM. लंबी नली होती है छोटी आँत तथा बड़ी आंत के मिलने के सथान पर एक अँगुली सदृश्य नलिका जुड़ी रहती है जिसे "कृमिरूप परिशोषिका" कहते है।
कोलन - यह उल्टे 'U' आकार की नलिका होती है जो 13 मीटर लंबी होती है चार खंडो में विभाजित होती है कोलन जगह-जगह फूला रहता है जिसे हॉस्ट्रा कहते हैं।
मलाशय - बड़ी आंत का अंतिम भाग, जो 15 CM. लंबा होता है, मलाशय में ही मल का जल का पुनः अवशोषण होता है
यकृत 【 जिगर 】-
सबसे बड़ी ग्रंथि - 1500 ग्राम, पित्त रस का स्त्रावण तथा थैलीनुमा संरचना पित्ताशय में एकत्र होता है
कार्य-
आमाशयिक रस के अम्ल को प्रभावहीन करने के लिये पित्तरस बनाता है वह भोजन को क्षारीय माध्यम देता है साथ ही वसा का इमल्सीकरण करता है यकृत कोशिकायें हिपैरिन नामक प्रतिस्कंधक पदार्थ का स्त्रावण करती है जो रुधिर वाहिनियों में रुधिर को जमने से रोकता है
रुधिर में आवश्यकता से अधिक ग्लकोस पहुॅचता है तो यकृत कोशिकाओं द्वारा ग्लाइकोजन में बदल दिया जाता है और यकृत में संचित संचित कर दिया जाता है। रुधिर में ग्लूकोस की मात्रा कम होने पर यकृत में संचित ग्लाइकोजन को ग्लकोस में बदल कर रुधिर में छोड़ देता है 【ग्लूकोजिनोलाइसिस】
आहार की क्रमाकुंचन रुधिर का थक्को बारे में [प्रोथ्राम्बिन & फाइब्रिनोजन प्रोटीन】
अग्न्याशय (Pancreas)-
यकृत के बाद शरीर की दूसरी सबसे बड़ी ग्रंथि है यह लगभग 12-15 CM लंबी तथा J आकार की होती है
भार-60-90 ग्राम होता है यह एक मिश्रित ग्रंथि है
कार्य- तीन एंजाइम
■ एमाइलेज या एमाइलोटिसन-मुख गुहिका में लार के प्रभाव से बचे कार्बोहाइड्रेट की शर्करा में बदल देता है
■ लाइपेस या स्टीएप्सिन - वसा को वसीय अम्ल में
■ ट्रिप्सिन या काइमोट्रिप्सिन - प्रोटीन का पाचन
हार्मोन-आमाशय की लैगरहेंस की हीपिकाओं में उपस्थित - कोशिकाओं से इंसुलिन तथा अल्फा-कोशिकाओ से ग्लुकैगॉन नामक हार्मोन का स्त्रावण होता है ये हार्मोन्स कार्बोहाइड्रेट्स उपापचय का नियंत्रण एर्व नियमन करते है
श्वसन तंत्र-
मुख्य अंग-
नासिका और नासामार्ग - नासागुहा के बीच श्लेष्म कला या श्लेष्मक झिल्ली उपस्थित होती है श्लेष्म कला पर असंख्य बाल जैसे अत्यंत महीन रोमाभ होते हैं
ग्रसनी- नासामार्ग प्रसनी में खुलता है, ग्रसनी का अग्रभाग नासाग्रसनी कहलाता है तथा पिछला भाग कण्ठग्रसनी कहलाता है
वायुनाल -
स्वरयंत्र / कंठहार (Larynx) - गले के सामने बक्सा/टेंटुआ खासनली (Trachea)-10-12 Cms लंबी, 1.5-2.5 Cms.व्यास
फेफड़े - दोनो फेफड़ों के चारों ओर पतली तथा दोहरी झिल्ली चढ़ी होती है जिसे फुप्फुसावरण कहते हैं, दाहिना फेफड़ा बाएं फेफड़े से कुछ बड़ा तथा चौड़ाई, परन्तु लंबाई में छोटा होता है फेफड़े तन्तुपट या डायाफ्राम के उमरे हिस्से पर चिपके रहते हैं।
फेफडो की बाहय सतह चिकनी एवं सपाट होती है परंतु आंतरिक संख्या में मधुमक्खी के छत्ते की भाँति अनेक वायुकोष्ठ पाये जाते है
वायुकोष्ठक की आंतरिक संरचना -
वायुकोष्ठक या वायुकोषों की बाहय स्तर पर रुधिर केशिकाओं का जाल फैला रहता है जो फुफ्फुस धमनी के अत्यधिक शाखान्वित होने से बनता है इन कशिकाओं में शरीर से आक्सीजनरहित रुधिर आता है इसमें CO2 की मात्रा अधिक होती है वायकोष्ठों में CO2 बाहर विसरित होकर O2 रुधिर केशिकाओं से रुधिर में विसरित हो जाती है वायुकोष्ठों की O2 युक्त कधिर केशिकाए आपस में मिलकर रुधिर वाहिनी का निर्माण करती है ये अपेक्षाकृत मोटी होती है जो फुफ्फुसशिरा में खुलती है।
सर्कुलेशन-
दो प्रकार के होते है
■ खुला परिसंचरण तंत्र 【पतली नलिकाएँ नही】
■ बंद परिसंचरण तंत्र 【निश्चित वाहिनियों में रुधिर】
रुधिर परिसंचरण तंत्र-
रुधिर- तरल संयोजी ऊतक, जल से भारी Ph-7.3-7.5 तथा अपारदर्शी पदार्थ है शरीर के भार का 7-8% या 5-6 लीटर
हृदय- बंद मुट्ठी के समान, गुलाबी रंग का, स्पन्दशील, शंक्वाकार, खोखला, मांसल तथा वजन 12-13 Cm. लंबा तथा अग्रसिरे पर लगभग 09 CM चौड़ा तथा 06 CM. मोटा मानव हृदय चार कक्षीय या वेश्मीय होता है जोकि हृदय खाँच या कोरोनरी सल्कस द्वारा अलिन्द तथा निलय में बंटा रहता है अलिंद हृदय का ऊपरी चौड़ा भाग तथा निलय हृदय का निचला शंकुरूपी भाग होता है शरीर से रुधिर लाने वाली मुख्य रुधिर वाहिनियों (महाशिराएँ) दाएं अलिंद में खुलती है तथा फेफड़ो से स्घिर लाने वाली वाहिनियों (फुफ्फुस शिराएँ) बाएँ अलिंद में खुलती है दाएँ निलय से फुफ्फुस महाधमनी (पल्मोनरी) निकलती है तथा बाये निलय में मुख्य घमनी निकलती है ये दोनो कृमशः फेफड़े एवं शरीर को रुधिर ले जाने वाली मुख्य रुधिर वाहिनियां है.…..!!
मनुष्य के चतुष्वेश्मी हृदय में चार पूर्णवेश्म अर्थात दो अलिन्द तथा दो निलय दिखाई देते हैं अलिंदो की दीवार अपेक्षाकृत पतली जबकि निलय की दीवारें मोटी होती है होती बायां अलिंद सबसे बड़ा वेश्म होता है
लसीका परिसंचरण तंत्र-
रुधिर परिसंचरण तंत्र के अतिरिक्त एक अन्य तरल परिसंचरण थी पाया जाता है जिसे लसीका परिसंचरण तंत्र कहते है
● लसीका केशिकाएँ - महीन नलिकाएँ
● लसीका वाहिनियों - लसीका केशिकाएं मिलकर लसीका वाहिनियाँ
● लसीका ग्रंथियाँ - लसीका वाहिनियाँ फूलकर लसीका गाँठे बनाती हैं
उत्सर्जन तंत्र-
उत्सर्जन तीन प्रकार के होते है
1.अमोनिया उत्सर्जन
2. यूरिया उत्सर्जन
3. यूरिक अम्ल उत्सर्जन
वृक्क-एक जोडी वृक्क, उदरगुहा में डायाफ्राम के नीचे कशेरुक दंड के दोनों तरफ अधर सतह पर पतली पेरीटोनियम झिल्ली द्वारा लगे रहते है
सेम के बीज के आकार के कत्थई, भूरे तथा लगभग 10CMs. लंबे, 5-6 CM. चौड़ा एवं 2.5 Cm. मोटा होता है 130-160 ग्राम, वृक्क के ऊपर अधिवृक्क ग्रंथि होती मनुष्य में दायाँ वृक्क बाएं वृक्क की अपेक्षा कुछ पीछे तथा नीचे की ओर स्थित होता है
प्रत्येक वृक्क में कई गुच्छित और लम्बी सूक्ष्मनलिकाएँ होती हैं जिन्हें वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन कहा जाता है। प्रत्येक वृक्क में लगभग 8-12 लाख सूक्ष्म, लम्बी और लम्बी वृक्क नेफ्रॉन्स होती हैं
कार्य-
ये उपापचयी नाइट्रोजनी अपशिष्ट पदार्थों को जल के माध्यम से बाहर निकालने के लिये प्रमुख उत्सर्जी अंग, लवणों की मात्रा को संतुलित करता है जिससे रुधिर दाब भी नियंत्रित रहता है भ्रूणीय अवस्था में वृक्क RBCs का निर्माण भी करते है
जनन तंत्र-
■ नर-
वृषण - पुरुषों में एक जोड़ा वृषण, उदरगुहा से बाहर शिशन के पास वृषण कोष या अंडकोष में सुरक्षित रहते है झका तापमान शरीर से लगभग 2/2.5℃ कम रहता है। वृषण से नर हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन का स्त्रावण भी होता है।
अधिवृषण - प्रत्येक वृषण से चिपकी कुण्डलित, नलिकाकार लंबी चपटी संरचना है लम्बाई-6Cms.
शुक्राणु- 600 म्यु लंबा
■ मादा-
अण्डाशय - एक जोडी अण्डाकार, उदरगुहा में वृक्कों के नीचे गर्भाशय में इधर-उधर स्थित होती है, 03 Cms लंवी, 02 cms चौड़ी व 0.8 cms मोटी होती है अंडाणुओं का निर्माण प्रोजेक्टरॉन तथा एस्ट्रोजन हार्मोन का स्त्रावण करती है
पोषक पदार्थ -
रासायनिक दृष्टि से दो भागों में वर्गीकृत किया गया -
1.कार्बनिक पदार्थ
2.अकार्बनिक पदार्थ
■ कार्बनिक पदार्थ (जैविक अणु)-
कार्बोहाइड्रेट - C:H:O- 1:2:1
प्रोटीन-14% भाग, अमीनो अम्ल के बहुलक
वसा-कॉर्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन के असंतृप्त
विटामिन्स-जटिल कार्बनिक यौगिकों ,शरीर की प्रतिरक्षा
वसा में विलेय -
1.A (रेटिनॉल)-रतौंधी
2.D (कैल्सिफेरॉल)-रिकेट्स
3.E (टोकोफेरॉल)-एनीमिया
4.K (नेफ्थोक्विनोन)- थक्का न जमना
जल में विलेय-
1.B1 (थायमीन)-बेरी बेरी
2.B1 (राइबोफ्लेविन)
3.B3 (निआसीन)-पेलेग्रा
4.B5 (पेंटोथैनिक)-बाल सफेद
5.B6 (पिरिडोक्सिन)
6.B12 (सायनोकोबालिन)
7.C (एस्कार्बिक)-स्कर्वी
अकार्बनिक पदार्थ-
● खनिज लवण-2-3% , Ca, Mg, Na, K, F
● जल-60-80% भाग
■ रुधिर परिसंचरण तंत्र की खोज की खोज विलियम हार्वे ने की थी रुधिर वर्ग की खोज कार्ल लैंडस्टीनर ने 1902 में की थी
AB-सर्वग्राही
O-सर्वदाता
पादपों में नियंत्रण-
● पादप हार्मोन्स-हार्मोन शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम "स्टरलिंग" ने किया था पादपों में वृद्धि तथा विकास को नियंत्रित करते है पादप हार्मोन्स या वृद्धि नियामक हार्मोन्स भी कहते है
● वृद्धि हार्मोन्स- ऑक्सिन, जिबरेलिन, साइटोकाइनिन आदि
● वृद्धि निरोधक-एब्सिसिस अम्ल, इथाइलीन आदि
ऑक्सिन- वेन्ट ने खोज की जड़ या तने के वृद्धि शीर्ष से स्त्रावित कार्बनिक पदार्थ है जो मुख्यता कोशिकाओं में दीर्घीकरण को प्रेरित करती है
जिबरेलिन-खोज-जापानी वैज्ञानिक कुरोसावा ने 1926 में की थी वृद्धि नियंत्रक पदार्थ, कमजोर अम्लीय हॉर्मोन है ये हार्मोन आनुवंशिक बौने पादप के दीर्घीकरण में सहायक है
साइटोकाइनिन- मिलर & सहयोगियों ने सर्वप्रथम खमीर और फंफूद DNA से प्राप्त किया इसलिए इसे "काइनेटिन" नाम दिया लैथम तथा सहयोगियों ने प्रथम प्राकृतिक साइटोकाइनिन को अपरिपक्व मक्के के दाने में खोजा और इसे "जियाटिन" नाम दिया जियाटिन एक प्राकृतिक एवं सबसे अधिक सक्रिय साइटोकाइनिन है कोशिका विभाजन में सहायक होता है
एब्सिसिस अम्ल-कॉर्न्स तथा एडिकोट (1961-65) ने कपास के पादप की कलियों से अलग किया था
इथाइलीन-"गैसीय हार्मोन" वर्ग ने पादप हार्मोन सिद्ध किया फलों को पकाने में सहायता प्रदान करता है

0 टिप्पणियाँ